धराली और किश्तवाड़ में बादल फटने से मची तबाही के बाद अब जम्मू के डोडा जिले में क्लाउडबस्ट की घटना सामने आई है. इलाके में बादल फटने से चार लोगों की मौत हो चुकी है और कई मकान सैलाब में बह गए हैं.
डोडा की भयावह घटना का विवरण
क्या हुआ?
जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले में तेज़ मौसम के चलते एक बादल फटने (cloudburst) की घटना हुई, जिससे अचानक बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई।
flash floods के कारण 10 से अधिक घर क्षतिग्रस्त या बह गए, और इस आपदा में 4 लोगों की जीवनहानि हुई है।Free Press KashmirIndia Today
भयावहता की तुलना: किश्तवाड़ और धराली जैसी घटनाओं से
यह घटना किश्तवाड़ के चशोती गांव में 14 अगस्त को हुई बड़े पैमाने पर तबाही—जहाँ एक बादल फटने से 67 से अधिक लोग मारे गए और 300 से ज़्यादा घायल हुए थे—जैसी अन्य त्रासद प्रसंग से मिलती-जुलती है।Wikipedia
धराली (उत्तराखंड) में भी हाल ही में हुई flash flood की पूरी कामधेनु बनी—जहाँ गांव लगभग पूरी तरह बह गया, कई घर और होटल खा गए, और उस घटना का विज्ञान आयाम glacial lake outburst flood (GLOF) से जोड़ा जा रहा है।AP NewsWikipedia
इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि हिमालयी और पहाड़ी इलाकों में मौसम और भू-विज्ञान आधारित आपदाएँ एक गंभीर और सामान्य खतरा बन चुकी हैं।
प्रशासन क्या कर रहा है?
मौसम विभाग ने जम्मू क्षेत्र में भारी वर्षा, बादल फटने, फ्लैश फ्लड्स और भूस्खलन की संभावना के चलते अलर्ट जारी किया है—विशेषकर काठमू, सांबा, डोडा, जम्मू, रामबन और किश्तवाड़ जिलों के लिए।Free Press KashmirIndia TodayThe Economic Times
बचाव और राहत कार्य तेजी से जारी हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग जम्मू–श्रीनगर बंद कर दिया गया है क्योंकि भूस्खलन और पत्थर गिरने की आशंका है।India TodayThe Times of IndiaThe Economic Times
सरकार ने टावी नदी समेत अन्य नदियों के खतरे के स्तर (danger marks) पार कर लेने पर वहां के निवासियों को सतर्क रहने की चेतावनी दी है।The Economic TimesIndia Today
निष्कर्ष — क्या यह और बिगड़ेगा?
डोडा में हुई यह त्रासदी साफ़ तौर पर हिमालयी इलाकों में मौसमी असामान्यताओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का एक और उदाहरण है।
किश्तवाड़ और धराली जैसी पिछली घटनाओं की तरह, यह घटना भी एक चेतावनी है कि पहाड़ी क्षेत्रों में भविष्य में ऐसे ही हादसे किसी भी समय हों सकते हैं—इसलिए सतर्कता, पूर्व-नियोजन और वैज्ञानिक तैयारी महत्वपूर्ण हैं।
स्थानीय प्रशासन, मौसम विभाग और रेस्क्यू एजेंसियाँ मिलकर तत्काल राहत और दीर्घकालिक तैयारी सुनिश्चित करें—यह भविष्य में और नुकसान कम करने के लिए अहम होगा।