‘मिशन 9 अक्तूबर’: मायावती की सियासी योजना क्या है?
1. मिशन की पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश में 2027 का विधानसभा चुनाव ‘करो या मरो’ की तरह मायावती और पार्टी बसपा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसी कड़ी में, उन्होंने 9 अक्तूबर—जो उनके संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है—को एक नए राजनीतिक अभियान की शुरुआत के लिए चुना है। इस दिन से शुरू होने वाली रणनीति को ‘मिशन 2027’ के रूप में देखा जा रहा है।AajTakChetna Manch
2. 9 अक्तूबर के कार्यक्रम की रूपरेखा
लखनऊ में एक बड़ी रैली: मायावती लखनऊ में ‘मिशन 2027’ की शुरुआत के रूप में एक विशाल रैली करने की योजना बना रही हैं।Chetna Manch
सभी जिलों में कार्यक्रम: साथ ही यूपी के सभी जिलों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जो न केवल श्रद्धांजलि सभा होगी, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं को आगामी रणनीति से अवगत कराने का मंच बनेगी।Chetna Manch
सियासी ताकत दिखाने का उद्देश्य: यह आयोजन समझाया जाता है कि वह बसपा को न केवल एक विकल्प के रूप में पेश करना चाह रही हैं, बल्कि अपना कोर वोट बैंक—दलित वर्ग—और विशेष रूप से अतिपिछड़ा और मुस्लिम समुदाय को जोड़ने की भी कोशिश कर रही हैं।Chetna ManchAajTak
3. पंचायत चुनाव: बसपा की प्रयोगशाला
‘मिशन 2027’ की तैयारी का एक बड़ा हिस्सा 2026 में होने वाले पंचायत चुनावों को गंभीरता से लेने में है। बसपा इसे अपनी राजनीतिक वापसी के लिए एक प्रयोगशाला मान रहे हैं।
कैडर कैंप, बूथ मीटिंग्स, सामाजिक संवाद: पार्टी सक्रिय रूप से गांव-गांव जाकर बूथ स्तर पर बैठकों का आयोजन कर रही है, नई योग्यता वाले नेताओं को मौका दे रही है, और पुराने कार्यकर्ताओं को जोड़ने की पहल कर रही है।Chetna Manch
स्थानीय नेताओं के साथ जुड़ाव: वरिष्ठ नेता ग्रामीण स्तर पर काम कर रहे हैं, सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों का चयन कर रही है—जैसे पिछड़े समुदायों और मुस्लिम नेतृत्व को मौका देना।Chetna Manch
4. ‘सोशल इंजीनियरिंग’ रणनीति की वापसी?
मायावती की यह रणनीति 2007 की राजनीति की याद दिलाती है—जब उन्होंने दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम समीकरण की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के जरिए अपनी ताकत साबित की थी।
इस बार भी पार्टी मजबूती से यह कोर वोट बैंक जुटाना चाहती है, और पंचायत चुनाव को इसके लिए एक ताना-बाना तैयार करने का जरिया मानती है।Chetna ManchAajTak
5. ‘साइलेंट स्ट्रैटेजी’: बिना शोर-शराबे की तैयारी
मायावती परंपरागत रूप से रणनीतिक रूप से शांत लेकिन प्रभावशाली लीडर के रूप में प्रतिष्ठित रही हैं। इस बार भी उन्होंने बड़ी घोषणा या गठबंधन किए बिना, गुप्त रूप से संगठन मजबूत करने का काम शुरू कर दिया है।
कमेटी गठन, दल बदल रहे नेताओं को जोड़ना, बूथ स्तर पर एक्टिविटी—ये सब योजनाबद्ध तरीके से बिना जन प्रचार के हो रहा है।AajTakChetna Manch
6. क्या बसपा वापसी कर पाएगी?
यह सबसे बड़ा सवाल है:
2007 की उपलब्धि—जब बसपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई—उसके बाद लगातार हार का दौर चला, वोट शेयर गिरा, कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, और गैर-जाटव दलितों का समर्थन कमजोर हुआ।AajTakNavbharat Times
2022 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनावों में मिली हार ने पार्टी की पैठ और अस्तित्व पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
अब मायावती के सामने यह चुनौतियाँ हैं:
क्या वह कोर वोट बैंक लौटवा पाएंगी?
क्या पंचायत स्तर पर रणनीति काम करेगी?
क्या गठबंधन के बिना वह तीसरी ताकत के रूप में स्थापित हो पाएंगी?Chetna ManchNavbharat Times
सारांश: मुख्य बिंदु
चाबी | विवरण |
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मिशन 9 अक्तूबर | 9 अक्टूबर को लखनऊ की रैली और जिला कार्यक्रमों से ‘मिशन 2027’ की शुरुआत |
तकनीकी तैयारी | पंचायत चुनावों को संगठन मजबूत करने और नए चेहरों को सक्रिय करने का मञ्च बनाया जा रहा है |
सामाजिक इंजीनियरिंग | दलित, पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समुदाय को जोड़ें जाने की रणनीति |
शांत पर सशक्त रणनीति | बिना बड़े प्रचार या घोषणाएँ किए संगठन को भीतर से मजबूत करना |
वापसी की चुनौती | लगातार घटते जनाधार और पूर्व चुनावों में मिली हार को पीछे छोड़कर पुनर्जीवित होना |