सपने से यथार्थ की ओर एक कदम
18 अगस्त 2025 को, जब मुख्यमंत्री ए. रेवांथ रेड्डी ने 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेताओं का अभिनन्दन किया, तो उनके शब्दों में एक बड़ी संकल्प शक्ति झलक रही थी। उन्होंने वादा किया:
“हैदराबाद को जल्द ही देश का top-notch film-making hub बनाया जाएगा। सरकार फिल्म उद्योग को हर तरह का समर्थन प्रदान करेगी।”
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यह वादा केवल एक औपचारिक घोषणा नहीं, बल्कि उस पहल की पुष्टि थी जो पिछले महीनों में आत्मविश्वास के साथ प्रारम्भ हुई है।
विकास का रास्ता: नीति से पहचान तक
यह विजन अकेले सरकार का नहीं है—यह तेलुगु सिनेमा (टॉलीवुड) की बढ़ती पहचान और राष्ट्रीय मंच पर सफलता का परिणाम भी है। रेवांथ रेड्डी ने कहा:
“हमारा उद्देश्य है कि सिनेमा, एक सांस्कृतिक पहचान, रोजगार, और पर्यटन को जोड़कर, इसे विकास का एक शक्तिशाली दस्तूर बनाना।”
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इस सपने को साकार करने का रोडमैप हाल ही में डिप्टी CM भट्टी विक्रमार्क द्वारा तैयार किए गए डीपीआर (देटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) से शुरू हुआ। इसमें शामिल हैं:
हैदराबाद को इंडियन सिनेमा की राजधानी बनाना,
सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम लागू करना, ताकि शूटिंग परमिशन देते समय फिल्म निर्माताओं को कई विभागों से अनुमति न लेनी पड़े,
TFDC (Telangana Film Development Corporation) के कार्यालय में लायजन अधिकारी (liaison officer) नियुक्त करना, जो सब अनुमोदनों को सहज रूप से आगे बढ़ाए।
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परिवर्तन की गति
इन पहलों की जरूरत सिर्फ समय की मांग नहीं, बल्कि बढ़ रहा अवसर और टॉलीवुड के अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्ति की दिशा में एक ज़रूरी कदम है। CM ने उद्योग से आग्रह किया कि वे Vision Document 2047 तैयार करें—जो तेलंगाना को $3 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने की रणनीतिक नींव हो।
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मन का पल: कलाकारों और सरकारी मुलाकात
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं के साथ मुलाकात के दौरान CM ने उन्हें उनकी मेहनत और कला के लिए वाहवाही दी—जिससे ऐसा लगा कि यह सिर्फ औपचारिक समर्थन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक सराहना है।
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यह कि जिस शहर में सिनेमा की जड़ें ठोस हैं—जहाँ रामोजी फिल्म सिटी जैसी विश्व प्रसिद्ध संरचना है—वहाँ सरकार फिल्म उद्योग को और ऊँचाइयों पर ले जाना चाहता है, यह अपनी जगह उत्साहवर्धक है।
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मानवीय दृष्टिकोण से निष्कर्ष
सतत सहयोग: फिल्मकारों को केवल सम्मान नहीं, बल्कि सुशासन और सुगम प्रक्रिया की गारंटी दी जा रही है।
संस्कृति से अर्थव्यवस्था तक: फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं — यह पहचान, रोजगार, और पर्यटन का स्रोत बन सकता है।
सपनों की जमीन: जब सरकार और कलाकार साथ खड़े हों, तो फ़िल्में सिर्फ पर्दे पर नहीं, बल्कि शहर की नियति बदलने लगती हैं।